जन्माष्टमी(janmashtam) के अवसर पर नदी-नालों के किनारे लगी लोगों की भारी भीड़, किया मटकी पूजन
नदी-नालों के किनारे लगी लोगों की भारी भीड़
फाजिल्का, पंजाब
जन्म अष्टमी(janmashtami) के अवसर पर फाजिल्का में जहां एक तरफ मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी गयी, वहीं गांवों में मटकी पूजा की रस्म भी की गयी। इस बीच नदी-नालों के किनारे के गांवों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इस अवसर पर लोगों द्वारा मटकी को जलप्रवाह किया गया तथा मीठी रोटियां एवं देशी घी का प्रसाद भी वितरित किया गया।
मटकी पूजन के दौरान बड़ी संख्या में छोटे बच्चे भी पहुंचे, जो मटकी में लगे खाने-पीने का सामान और पैसे इकट्ठा करते नजर आए।
फूलों से सजाई जाती है मटकी
इस मौके पर लोगों ने बताया कि जनमाष्टमी के मौके पर ग्रामीण माता शीतला देवी की पूजा करते हैं और मटकी पूजन भी करते हैं।
उन्होंने बताया कि इस दौरान मटकी को फूलों के हार से सजाकर घर और गांव की युवतियां अपने सिर पर सजाती हैं। इसके बाद युवतियां समूह बनाकर नदी या नहर के किनारे पानी में प्रवाहित कर देती हैं।
सदियों से चली आ रही परम्परा(Parampra)
उन्होंने कहा कि मटकी पूजन ग्रामीणों की बहुत पुरानी परंपरा है और यह सदियों से चली आ रही है। इसे कई दिन पहले ही तैयार कर लिया जाता है। यह अनुष्ठान राखी के पवित्र त्यौहार के लगभग एक सप्ताह बाद किया जाता है।
मटकी पूजन से एक दिन पहले लोग अपने-अपने घरों में मीठी रोटियां बनाते हैं। जिन्हें पंजाबी में टिकड़े व मन कहा जाता है।
मीठी रोटी और देशी घी का प्रसाद बांटा
इन रोटी के टिक्कों को तेल की कड़ाही में तलकर बनाया जाता है और मन को सामान्य रोटी की तरह सीधे तवे पर पकाया जाता है। आमतौर पर इस अनुष्ठान के उपासक इन्हें पकाने बाद ऐसे नहीं खाते हैं। वे मटकी पूजा के दिन इसे पहले प्रसाद के रूप में बांटते हैं और फिर खुद खाते हैं।
उनका कहना है कि मटकी पूजन के दौरान लोग मन्नतें भी मानते हैं और उनकी सभी मन्नतें पूरी होती हैं। उन्होंने कहा कि यह अनुष्ठान आम तौर पर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी का दूसरा रूप है।
धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही यह प्रथा
आपको बता दें कि कई साल पहले यह समारोह गांवों में लगभग हर घर में एक साथ मनाया जाता था, लेकिन समय बदलने के साथ-साथ इस समारोह को मनाने वालों की संख्या कम होती जा रही है।
आजकल लगभग हर घर में इस रस्म के अनुसार मीठी रोटियां बनाई जाती हैं, लेकिन मटकी जल प्रवाह की रस्म बहुत कम लोग मनाते हैं। कहा जा सकता है कि लोगों की भागदौड़ भरी जिंदगी और व्यस्तता के कारण यह प्रथा विलुप्त होती जा रही है।