छठ पूजा, सूर्य देव (सूर्य) और छठी मैया (सूर्य की बहन) को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक है, जिसे अत्यधिक भक्ति और विस्तृत अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। यह चार दिवसीय त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है, लेकिन इसे भारत के कई हिस्सों और दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों के बीच मान्यता और भागीदारी मिली है। आइए छठ पूजा 2024 के मुख्य विवरण, महत्व और समय के बारे में जानें।
छठ पूजा 2024 तिथियां
छठ पूजा हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के बढ़ते चरण) के दौरान मनाई जाती है। 2024 में यह त्योहार बुधवार, 5 नवंबर से शुक्रवार, 8 नवंबर तक मनाया जाएगा।
2024 के लिए पूजा का समय
द्रिक पंचांग के अनुसार,
नहाय खाय: 5 नवंबर सुबह 6:36 बजे से शाम 5:33 बजे तक
लोहंडा और खरना: 6 नवंबर सुबह 6:37 बजे से शाम 5:32 बजे तक
संध्या अर्घ्य: 7 नवंबर सुबह 6:38 बजे से शाम 5:32 बजे तक
उषा अर्घ्य: 8 नवंबर सुबह 6:38 बजे से शाम 5:31 बजे तक
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का सार सूर्य देव की पूजा में निहित है, जिन्हें सभी जीवन और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। भक्तों का मानना है कि सूर्य को अर्घ्य देने से स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली मिलती है। छठी मैया, जिन्हें एक सुरक्षात्मक मातृ स्वरूप माना जाता है, को आशीर्वाद देने और इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी सम्मानित किया जाता है।
यह त्यौहार अपने कठोर और विस्तृत अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है, जिसमें पूर्ण शुद्धता, समर्पण और लंबे समय तक पानी के बिना उपवास करना शामिल है। उपासक, जिन्हें व्रती के नाम से जाना जाता है, पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और भविष्य की समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।
छठ पूजा की विधियां
नहाय खाय: पहला दिन त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है, जहां भक्त खुद को और अपने आस-पास को साफ करते हैं, जो शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है। इस दिन एक साधारण भोजन की तैयारी शामिल होती है, जो आम तौर पर पारंपरिक मिट्टी या कांस्य के बर्तन में पकाया जाने वाला कद्दू-भात (कद्दू और चावल) होता है।
लोहंडा और खरना: दूसरे दिन, भक्त दिन भर का उपवास रखते हैं जो सूर्यास्त के बाद समाप्त होता है। वे गुड़ आधारित चावल की खीर (खीर) और बिना नमक या तेल के बनी चपाती के साथ अपना व्रत तोड़ते हैं। यह दिन मुख्य उपवास अवधि की तैयारी का प्रतीक है।
संध्या अर्घ्य (शाम का प्रसाद): तीसरा दिन त्योहार का सबसे प्रमुख हिस्सा है, जहां भक्त डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदी या जल निकायों के किनारे इकट्ठा होते हैं। वे पारंपरिक गीत गाते हैं, प्रार्थना करते हैं और कमर तक पानी में खड़े होकर फल और ठेकुआ (साबुत गेहूं के आटे और गुड़ से बनी मिठाई) चढ़ाते हैं।
उषा अर्घ्य (सुबह का प्रसाद) और पारण: अंतिम दिन भोर में उगते सूर्य को अर्घ्य देना शामिल है। इस अनुष्ठान के बाद व्रत समाप्त होता है, और व्रती परिवार और दोस्तों के साथ प्रसाद साझा करके अपना उपवास तोड़ते हैं।
परंपराएँ और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा न केवल धार्मिक महत्व का त्योहार है बल्कि सामुदायिक भावना और पारिस्थितिक सद्भाव का भी प्रतिनिधित्व करता है। उपासक भक्ति का माहौल बनाते हैं जो प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है, क्योंकि सभी अनुष्ठान नदी तट या प्राकृतिक तत्वों वाले जल निकायों पर किए जाते हैं। भक्त पर्यावरण-अनुकूल सामग्री जैसे मिट्टी के दीपक, बांस की टोकरियाँ और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करते हैं, जो त्योहार की स्थिरता को रेखांकित करते हैं।
अनुष्ठान विनम्रता की भावना को बढ़ावा देते हुए अनुशासन, सादगी और समर्पण पर जोर देते हैं। छठ पूजा सामाजिक और आर्थिक दूरियों को भी पाटती है, लोगों को उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना एक साथ लाती है।
(यह लेख केवल आपकी सामान्य जानकारी के लिए है। ज़ी न्यूज़ इसकी सटीकता या विश्वसनीयता की पुष्टि नहीं करता है।)