हरियाणा में एक अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच रोमांचक मुकाबला होने की संभावना है।

अगर तीन महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों के नतीजों पर गौर करें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही बराबरी की स्थिति में दिख रही हैं, दोनों ने पांच-पांच सीटें जीती हैं। राज्य की 10 लोकसभा सीटों में फैले 90 विधानसभा क्षेत्रों में भी दोनों प्रतिद्वंद्वी बराबरी पर हैं।
सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा ने 44 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, जबकि भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (इंडिया), जिसके तहत कांग्रेस नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही थी और आम आदमी पार्टी (आप) एक सीट पर चुनावी मैदान में थी, 10 लोकसभा क्षेत्रों में 46 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रही थी।
स्पष्टता के लिए बता दें कि कांग्रेस ने नौ सीटों पर चुनाव लड़कर 42 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की है, जबकि उसकी सहयोगी आप को कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र के चार विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली है। यह एकमात्र सीट है जिस पर उसने सीट बंटवारे के तहत चुनाव लड़ा था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हरियाणा में भाजपा के 10 साल के शासन का असर राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर पड़ेगा। करीब दो लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं और युवाओं की बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद ने हाल ही में अनुबंधित कर्मचारियों को रिटायर होने तक नौकरी की सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य अनुबंधित कर्मचारियों के लिए नौकरी की सुरक्षा की गारंटी देना है। सैनी ने वास्तव में अपने पूर्ववर्ती एमएल खट्टर द्वारा लिए गए कई फैसलों को रद्द कर दिया, जैसे पिछड़े वर्गों को क्रीमी लेयर से बाहर करने के लिए आय सीमा बढ़ाना, सकल वार्षिक आय का पता लगाने के लिए वेतन या कृषि भूमि से आय को बाहर करना, ई-टेंडरिंग के बिना सरपंचों द्वारा विकास कार्य करने के लिए वित्तीय सीमा बढ़ाना आदि। हालाँकि, सैनी द्वारा इस ज्वार को रोकने के प्रयास बहुत कम और बहुत देर से हो सकते हैं।
कांग्रेस में बहुतायत की समस्या
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस को बढ़त हासिल हुई है, लेकिन इस बार उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस बार 90 विधानसभा सीटों के लिए 2,500 से ज़्यादा कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने टिकट के लिए आवेदन किया है। राज्य में वापसी की कोशिश कर रही गुटबाजी से ग्रसित इस पुरानी पार्टी को टिकट वितरण के दौरान कुछ समझदारी से काम लेना होगा। नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने कहा, “कई निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां 50 से ज़्यादा उम्मीदवार विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मांग रहे हैं। जिसे टिकट मिलेगा, उसे दूसरों को मनाने में काफ़ी मुश्किल होगी।”
चौटाला का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर?
2024 के लोकसभा चुनाव का एक बड़ा निहितार्थ राज्य में चौटालाओं का सफाया और जाटों सहित किसानों का कांग्रेस के पीछे एकजुट होना था। इसने द्विध्रुवीय विधानसभा चुनाव की संभावना का भी संकेत दिया। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), जो इस साल मार्च तक भाजपा के साथ साढ़े चार साल के सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा थी, 1% वोट शेयर पाने में विफल रही, जबकि इसके मूल संगठन, पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) को महज 1.74% वोट मिले।
विशेषज्ञ का कथन
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के राजनीति विज्ञानी प्रोफेसर आशुतोष कुमार का कहना है कि अक्टूबर 2024 का विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा तथा जेजेपी और आईएनएलडी हाशिये पर रह जाएंगे।
प्रोफेसर कुमार कहते हैं, “हमारे सामने एक बहुत ही कड़ा मुकाबला है। इस चुनाव में जाट फैक्टर की भूमिका अहम होगी। कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा अपने कद के कारण मतदाताओं के बीच स्वीकार्यता के मामले में नायब सैनी की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।”
कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने वाली गुटबाजी पर प्रो. कुमार ने कहा कि यह इस पुरानी पार्टी के लिए हमेशा की बात है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस गुटबाजी की आदी हो चुकी है। देखिए, शैलजा जैसे नेताओं समेत सभी नेताओं को खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए अपनी जमीन बचानी होगी।”