बागी शिरोमणि अकाली दल के नेताओं द्वारा सोमवार को स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त के समक्ष पेश होने और 2007 से 2017 के बीच दो कार्यकालों के दौरान शिअद के नेतृत्व वाली अकाली-भाजपा सरकार के दौरान की गई गलतियों के लिए माफी मांगने के बाद अब सभी की निगाहें सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ अकाल तख्त पर टिकी हैं।
जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह इस बात पर ध्यान केंद्रित करेंगे कि तख्त सिख राजनीति में उभरे संकट से कैसे निपटेगा।
हालांकि जत्थेदार की ओर से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन उनका अगला कदम शिअद की राजनीति और पंथिक राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
2015 में डेरा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह से माफी मांगने के मामले में अकाल तख्त के ढुलमुल रवैये के कारण पंजाब में अशांति फैल गई थी।
तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने डेरा प्रमुख को माफ़ी देने की पेशकश की और सिख समुदाय के कड़े विरोध के बाद कुछ दिनों बाद इसे वापस ले लिया। इसके बाद बेअदबी की कई घटनाएं हुईं, जिससे राज्य में कानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो गई और तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार को इसका पूरा दोष सहना पड़ा।
आलोचनाओं के चलते ज्ञानी गुरबचन सिंह ने अक्टूबर 2018 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी), जिसे सिखों की लघु संसद के रूप में जाना जाता है, बादलों द्वारा नियंत्रित है और वह शीर्ष धर्मगुरुओं में से जत्थेदार का चयन करती है।
बादल परिवार का एसजीपीसी पर काफी प्रभाव है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि सुखबीर के करीबी हरजिंदर सिंह धामी ने अपने प्रतिद्वंद्वियों बलवीर सिंह घुनस और पूर्व एसजीपीसी प्रमुख बीबी जागीर कौर को भारी अंतर से हराकर दो बार अध्यक्ष का चुनाव जीता है।
सिख इतिहासकार गुरदर्शन सिंह ढिल्लों ने तख्त तक पहुंचने के अकाली दल के विद्रोहियों के इरादे पर सवाल उठाया।
ढिल्लों ने कहा, “मेरी राय में, नेताओं को अकाल तख्त के पास जाने के पीछे अपने असली इरादे और मकसद का खुलासा करना चाहिए। साथ ही, अब तख्त के पास जाने की क्या जरूरत और जल्दी है, जब वे (शिअद) लगातार चुनावी मुकाबले हारने के बाद पंथ का विश्वास खो चुके हैं।”
पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केहर सिंह ने कहा कि इस समय तख्त को मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए और अकाली दल में विभाजन को रोकना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अकाल तख्त को सुखबीर समेत पूरी पार्टी के नेताओं को माफी देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए ताकि पंथ में उनकी स्वीकार्यता बहाल हो सके।’’