सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में जूनियर इंजीनियर बलवंत सिंह मुल्तानी के लापता होने और हत्या के मामले में पंजाब के पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी के खिलाफ नई एफआईआर में हस्तक्षेप करने से मंगलवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि मामले में आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद हुए घटनाक्रम को देखते हुए वह प्राथमिकी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहेगी।
शीर्ष अदालत ने हालांकि कहा कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आठ सितंबर, 2020 के फैसले में दर्ज टिप्पणियां और निष्कर्ष निचली अदालत की कार्यवाही में बाधा नहीं बनेंगे।
सैनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि यह राजनीतिक कारणों से कथित घटना के दशकों बाद 2020 में दर्ज की गई थी। उन्होंने कहा कि अदालत ने बार-बार सैनी को राहत दी है, जो एक सम्मानित अधिकारी हैं, और उन्हें मामले में किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचाया है।
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि चूंकि मामले में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है, इसलिए इस स्तर पर प्राथमिकी रद्द करने पर विचार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि सैनी निचली अदालत में कार्यवाही का सामना कर सकते हैं और उचित मंच पर उसे चुनौती दे सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने पांच जनवरी, 2021 को पंजाब सरकार से मामले में सैनी के खिलाफ दर्ज ताजा प्राथमिकी में दायर आरोपपत्र को रिकॉर्ड में रखने को कहा था।
सैनी को 2020 में मिली थी अग्रिम जमानत
शीर्ष अदालत ने 1991 में मुल्तानी के लापता होने और हत्या के ताजा मामले में सैनी को पहले ही अग्रिम जमानत दे दी थी।
शीर्ष अदालत ने 3 दिसंबर 2020 को 1991 की घटना से संबंधित एक नए मामले में सैनी को अग्रिम जमानत दे दी थी।
न्यायालय ने 33 वर्ष पुराने मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें उन्हें गिरफ्तारी पूर्व जमानत देने से इंकार कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि वर्तमान मामले में एफआईआर दर्ज करने में लंबा विलंब निश्चित रूप से अग्रिम जमानत देने के लिए एक वैध कारण हो सकता है।
न्यायालय ने कहा कि आरोपित एफआईआर (दिनांक 6 मई, 2020) मृतक के भाई पलविंदर सिंह मुल्तानी द्वारा घटना की तारीख से 29 वर्ष बाद दर्ज कराई गई है।
इसने कहा था कि ताजा प्राथमिकी में भी केवल अपहरण, साक्ष्यों को गायब करने, गलत तरीके से बंधक बनाने, स्वेच्छा से चोट पहुंचाने और भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश जैसे अपराधों के आरोप थे, जिसके लिए सैनी के पक्ष में अग्रिम जमानत का आदेश था।
सैनी पर मई 2020 में मुल्तानी के लापता होने के संबंध में मामला दर्ज किया गया था, जब वह चंडीगढ़ औद्योगिक और पर्यटन निगम (सिटको) में जूनियर इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे।
8 सितंबर, 2020 को उच्च न्यायालय ने मामले में सैनी की अग्रिम जमानत की दो याचिकाओं को खारिज कर दिया था और नई प्राथमिकी को रद्द कर दिया था।
मोहाली की एक अदालत द्वारा एक सितंबर, 2020 को इस मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद सैनी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
पंजाब पुलिस ने 3 सितंबर, 2020 को दावा किया था कि सैनी “फरार” हो गए हैं, जबकि उनकी पत्नी द्वारा उनके सुरक्षा कवर वापस लेने के दावों का खंडन किया गया था।
मोहाली की एक अदालत ने 21 अगस्त 2020 को पंजाब पुलिस को इस मामले में उनके खिलाफ हत्या का आरोप जोड़ने की अनुमति दी थी।
मामले में दो पुलिसकर्मी सरकारी गवाह बने
यह तब हुआ जब चंडीगढ़ पुलिस के दो पूर्व कर्मी, यूटी पुलिस इंस्पेक्टर जागीर सिंह और एएसआई कुलदीप सिंह, जो सह-आरोपी भी हैं, मामले में सरकारी गवाह बन गए।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले इस मामले से संबंधित एफआईआर को रद्द कर दिया था, जब सैनी पुलिस महानिरीक्षक थे।
मुल्तानी, जो मोहाली के निवासी थे, को 1991 में सैनी पर आतंकवादी हमले के बाद पुलिस ने उठा लिया था। सैनी उस समय चंडीगढ़ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे।
हालांकि, बाद में पुलिस ने दावा किया कि मुल्तानी गुरदासपुर में कादियां पुलिस की हिरासत से भाग गया था।
सैनी और छह अन्य के खिलाफ मुल्तानी के भाई जालंधर निवासी पलविंदर की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था।
उनके खिलाफ मोहाली के मटौर पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 364 (हत्या के लिए अपहरण या अपहरण), 201 (अपराध के साक्ष्य को गायब करना), 344 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 330 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 120 (बी) (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया था।